जिंदगी रास न आई फिर भी डटा रहा
पथ की मजबूरियां सहन करता रहा
कल बेहतर होगा ये चिंतन करता रहा
ऐसा क्यों हुआ नहीं, हुआ तलाशता रहा !
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सुख के पुष्प पास होते तो जीवन सजा लेता
हर रिश्तें की गरिमा को चांदिनी से नहा देता
अपनों की महफ़िल में खुशबूओं को बिखरा देता
स्नेह के सारे रंग सम्बन्धों के पैमाने में उंडेल देता
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जिंदगी कहती मुझसे अक्सर देख मुझे करीब से
हर कोई को नहीं मिलती, मै तुझे मिली नसीब से
पर न इतरा न ही इतना छितरा समझ मुझे जरा
मेरे आँचल के हर पहलू में तेरे लिये ममत्व भरा
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क्या हुआ अगर कुछ हासिल तुम्हें नहीं हुआ !
क्या फर्क पड़ेगा अगर कोई तेरा नहीं हुआ !
मजबूरियों को दहशत नहीं अवसर ही बना
रुके कदमों को ठहराव की वजह कभी न बना
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समझ गया जिंदगी का अधूरापन
मेरा स्वयं से ही है बेजान अपनापन
रिश्तों के मोह से दिल रिसता रहा
पाने को बहुत था मैं ही खोता रहा…..
✍ रचियता 💝कमल भंसाली