चमड़ी से ढकी, ये हाड़ मांस की काया
भ्रमित हुई देख के, निर्जीवता की माया
सबकुछ पाने के लिए, अपने को लगाया
बता इंसान, तुमने अभी तक क्या पाया ?
जानना जरूरी, पहला सुख है, निरोगी काया
न रहेगी तेरी काया, तो जीवन से, क्या पाया ?
संसार, मरीचिका का जंगल, साधनों में समाया
जो भटक गया, वह वापस कभी न आ पाया
देह धर्म की भी होती है, कोई संस्कारित मर्यादा
निर्जीव साधनों को कभी देखा, पूरा किया वादा
जीवन जब तक रहेगा, तब तक है, सब तुम्हारा
उस दिन को याद रख, जब मिटेगा वजूद तुम्हारा
समझ, लक्ष्मण की सीमा रेखा, न कर इसे पार
अंत सब का होता, उसके बाद तो है, अन्धकार
समय की अवधि होती, पर चाह कहां है, रुकती
निर्मुक्त काया,क्यों तुच्छ कोड़ियों के सामने झुकती ?
छोटी सी जिंदगी, बहुत कुछ सन्देश दे जाती
जग में आने की कोई वजह, तो जरुर बताती
कर्म की बुनियाद पर जिंदगी,नई राह तलाशती
रुकी सांस, सब कुछ छोड़, काया जलने जाती
समझने की बात, जियों और औरों को जीने दो
आत्मा को धर्म के पथ से मोक्ष की मंजिल पाने दो
मानव गुणों को बनाओ,जीने का एकमात्र आधार
संयम से तन मन को मिलता, ज्ञान का हर प्रकार
मुकद्दर की बात है, मानव जीवन हमारी सौगात
पता नहीं, किस जन्म में फिर हो हमारी मुलाक़ात
मकसद अपना कुछ भी, काया का न करे गुमान
कल नहीं रहेगी, जिस पर कर रहें है, हम अभिमान…
♀♀ कमल भंसाली ♀♀