आखिर माँ
तो माँ होती
बदनसीबी से
खुद अगर कभी
न भी हो तो
शब्दों में ही सही
पास ही तो होती
आखिर…
“माँ”
शब्द ही है दिलाशा
न इसमे कोई आशा
न ही समझे ये निराशा
ममता ही इसकी भाषा
सही, सच्ची परिभाषा
आखिर…..
कर्तव्य अपना बेखुबी निभाये
आंचल प्यार का छितराये
न भूख न प्यास सताये
जब सन्तान को कोई दुःख सताये
उसके लिए अपना सब कुछ लगाये
आखिर….
ना चिंतन भविष्य का
न ही वर्तमान का डर
न रखे हिसाब अपने आंसुओं का
न ही मांगे भुगतान अपनी दुआओं का
जो दिया जीवन ने उसका भूल जाये
चोट जब कोई तन मन पर खाये
तो उसे माँ ही याद आये
आखिर…
माँ अनपढ़ या शिक्षित
माँ के आंचल में सुरक्षित
बदनसीब होते है, वो
जो न जाने “माँ’
के ममता की क्षमता
उसकी जीवन दक्षता
उसका पावन है, हर आशीर्वाद
जिनमे एक ही ‘चाह’
मेरी सन्तान रहें ‘ सदा आबाद’
आखिर ……..