चमन को क्या हो गया
अपनी ही आस्थाओं से रुठ गया
विश्वास के नाम पर
कहीं और खो गया
शायद अपने ही आशियाना
में नजरबन्द हो गया
जो खिलखिलाता बचपन लाता
मासूमियत के अंदाज सीखाता
वो अपनी ही
आग में जल रहा
जीने के गलत मकसद
बता रहा
भटकी राह को
आजादी बता रहा
चमन….
कर्णधारों की हथेलियों से
भाग्य सहला रहा
सत्य के स्तंभ पर
असत्य का झण्डा लहरा रहा
जो उसे लूट रहे
उन्हें ही मसीहा बता रहा
सीमा के सिपाही को
चुप रहने का
संकेत समझा रहा
एक साइन बोर्ड
से कह रहा
देश प्रगति पथ पर
जा रहा
दूसरा बतला रहा
अफवाहों पर ध्यान
न दो
हमारा जहां
अभी नफरत की
फसल उगा रहा
चमन…..
नफरत के सोने से
तैयार हो रही लंका
चारों तरफ
नजर आ रही
शंका ही शंका
हर कोई रावण बन
राम की बात कर रहा
हनुमान बिचारा
एक कोने में बैठ
मूर्छित लक्ष्मण को
निहार रहा
जो बेहोशी में भी
राम की जगह
रावण रावण
बुदबुदा रहा
राम का भाई
रावण के गुण गा रहा
राम हताश हों
फिर, कहीं
एक और वनवास
रहा तलाश ……रचियता कमल भंसाली