अपने ही अंधेरों में
रौशनी को निहारता
निराशा के जंगल में
आशा प्रसून तलाशता
मन्दिर की मूर्ति में
आस्था को ढूंढता
लम्हों की जिंदगी में
उम्र की रेखा तराशता
दुःख की धरती में रहता
सुख की छांव ढूंढता
अविश्वासी अंखियन से
विश्वास खोजता
झूठ की छतरी से
सच की धूप सहमती
मन की चंचलता से
आत्मा भागती
सफर की डगर
पगडण्डिया अगर मगर
चाहत की मंजिल
आती नहीं नजर
देह धर्म निभाया
कर्म का रंग बदराया
रिश्तों को पाया
“स्वयं” खो गया
बनना था, इंसान
शैतान कहलाया
जीवन को सहलाया
मौत ने बुलाया
प्रेम बंटवाया
दर्द वापस आया
अमृत समझ पीया
जहर बन जीया
जो, समझने को आया
वही न समझ पाया
हर प्रश्न का उत्तर आया
“शून्य” दूर से मुस्कराया……
रचियता…..कमल भंसाली