अतीत के बिखरे पन्ने
कितना कुछ याद दिलाते
सूखे पेड़ पर सब्ज पत्ते उगाते
बीते जीवन का सारांश समझाते
कभी थे,नयनों के सितारे
आज,अधरों के दुलारे
गये क्षणों के राज, गहरे
कुछ मुस्कराहटों से भरे
कुछ गम से, सहमे डरे
कहीं पेड़, कहीं फूल प्यारे
कहीं धूल, कहीं इंटों के चबूतरे
कभी, सावन की झड़झड़ी
कभी रंग, कभी फुलझड़ी
त्योहारों के मौसम में
कितनी थी, मस्ती,
बीते बचपन की यादें
आज भी आती
अलसाई सी, वो जाड़े की भोर
वो गर्म रजाई, वो निंदिया चितचोर
माँ की धमकी, बाहर से आता शौर
मन्दिर की घंटिया, वो पतंगो की डोर
प्रांगण में पसरती, मासूम धूप
मानों कहती, हर डाट पर रहो, चुप
पल पल में, खिलखिलाना
छोटी छोटी बात पर चिल्लाना
कभी खेलना, कभी रुठना
कितना खिलाखिला था
कितना कुछ याद दिलाते
सूखे पेड़ पर सब्ज पत्ते उगाते
बीते जीवन का सारांश समझाते
अलसाई सी, वो जाड़े की भोर
वो गर्म रजाई, वो निंदिया चितचोर
माँ की धमकी, बाहर से आता शौर
मन्दिर की घंटिया, वो पतंगो की डोर
प्रांगण में पसरती, मासूम धूप
मानों कहती, हर डाट पर रहो, चुप
पल पल में, खिलखिलाना
छोटी छोटी बात पर चिल्लाना
कभी खेलना, कभी रुठना
कितना खिलाखिला था, बचपन
भरी दोपहर, चिपचिपाता पसीना
दो रोटी, का छाछ में डुबाकर खाना
गाँव की वो, मासूम तपती गलियां
कहीं बिच्छू, कहीं सांप, कहीं गौरैया
एक चौपाल, सौ चारपाई
नन्ही सी बहन आई, कहती दाई
हर घर की खबर, गुड़ गुड़ करती
हुक्के के धुंए से निकल कर
मोहल्ले के घरों में घुस जाती
जिंदगी, रुमानी लगती
बीते बचपन की यादें
आज भी आती
छोटी सी स्कूल की
बड़ी सी घंटी
सारे पाठ याद कराती
गुरुजी की पतली छड़ी
आसमान के सारे तारे
धरती पर दिखा देती
संस्कारों की शिक्षा
परीक्षा मे, अंको को ललचाती
कान पकड़
माँ, निगोड़ा कहती
पिताजी को चिठ्ठी लिखाती
बेगानी हुई
बीते बचपन की यादें
आज भी आती
माँ, जब भी मुस्कराती
कुछ दिनों बाद
डाकिये की आवाज आती
पिताजी के भेजे रूपये
सन्दूक में रखती
खुश होकर कहती
कल ‘गोलगप्पे’ खा लेना
कहकर सो जाती
रात बैचनी में कट जाती
खट्टी मीठी
बीते बचपन की यादें
आज भी आती……कमल भंसाली
उड़ता रहता है, आज भी मन
दौड़ती जिंदगी में
अब कहां है, ऐसे क्षण
जिनमें हो खुशियों का
सहज, सरल, मन
बीते बचपन की यादें
आज भी आती
✍️ कमल भंसाली