जो बीत गया, वो बीत गया
जो रह गया, वो रह गया
अधूरापन, जिंदगी का जो रहा
वो, सबके सामने आ गया
★
अंदर से मन भ्रांत हो गया
बाहर से फिर भी शांत हो गया
कसमकस जिंदगी की
क्या था, क्या हो गया
सपनों में मन
फिर सो गया
★★
चारपाई तो सत्य के के लिए लगाई
पर झूठ के आवरण में समा गई
व्यवहार की सर्दी में
सच्चाई झूठ की रजाई में
एक साथ सो गई
★★★
रजनीगन्धा के फूलों से
आत्मा को सजाना था
सच कहूं, अपने साजन को
ही रिझाना था
पर चंचलता ने हद कर दी
अपनी मेहँदी
किसी और के नाम कर दी
कल की सुहागरात को
उजालों में ही, बदनाम कर दी
★★★★
झूठी सी शान
करती मुझे परेशान
कहती मान या ना मान
मैं, तेरी नाजायज मेहमान
जीना है, तो जी
बैठ मेरे पास, झूठ की बोतल
जी भर कर पी…. कमल भंसाली
★★★★★★