कल की मस्ती
आज मुझ पर हंसती
मानों कह रही
तुमने समझा, मुझे सस्ती
जैसे मेरी
नहीं कोई हस्ती
तभी तुम्हारे पास कम रहती
अब भी बार बार कहती
जिंदगी को समझों
मैं, उसी के साथ रहती
रहती कुछ क्षण भर
पर याद रहती, जीवन भर
एक मुस्कराहट में समा जाती
क्योंकि मैं हूं, मस्त मस्त मस्ती
खुशनुमा सी
जब बहार बन आती
सबको सुहाती
ऋतु के अनुसार
चंचल बन इतराती
जीवन के विषम क्षणो में
अपनी याद दिलाती
तुम्हारी गहन दर्द की रेखाएं
इसलिये मुझसे जलती
मेरी रंगीन अदाओं को
तुम्हारी गलत करतूत बताती
पर, मैं क्यों परवाह करुं
आखिर नाम ही मेरा
मस्त, मस्त, मस्ती
मैं तो हूं, जैसी
रहूंगी, वैसी
बदलते जाए, जमाना
मुझे तो है, सिर्फ सबको हंसाना
उम्र मेरी ओस की बून्द जितनी
पर न मेरे पास गम, न कोई फ़साना
मैं एक तराना, गाते जाना
गुनगुनाकर कहना, जीवन तो है, बसन्ती
मेरा नाम है, मस्त मस्त मस्ती—–कमल भंसाली