“देख जमाने के हर सितम
“प्यार” हो गया, कमजोर
अब बदल गया, सब कुछ
नहीं चलता, उसका जोर”
कल तक इन्सान जिसे सदा दिल में रखता
आज पता नहीं, वो “प्यार”अब कहां रहता ?
खुदगर्जी ने लुभाया, सदा अब उसकी चलती
बिन प्यार शब्द, उसकी भी शायद नहीं निभती
कल तक का इंसान, प्यार का पूर्णता से कायल
आज इंसान अपनी बदलती फितरत से घायल
ख्वाईसों ने बदल डाला, आज हर इंसानी चेहरा
खुशियों का मोहताज हो रहा, इंसानी दिल बेचारा
सदियों से दिल टूटता आया, सबने समझा उसे ही खिलौना
प्यार ही हुआ बदनाम, दिल ने सदा उसे ही गुनहगार माना
बेवफाई सनम की, जब बर्दास्त की हर हद पार कर जाती
प्यार और वफ़ा की हर कसम, दिल को चूर चूर कर जाती
कल तक झूठ से कतराता, आज उसी का ही बिगुल बजाता
कल गुनाह कर शर्माता, आज उसे अपनी उपलब्धि बताता
बेशर्मी की हर हद से गुजर, जी रहा, प्राणी बेखबर, बेअसर
फिर भी कहता हर जिस्म, आ मुझे प्यार कर, बेशुमार कर
प्यार जिस्म की भूख नही, दिल की आरजू होती
बिन प्यार आत्मा की कोई उपासना पूर्ण नहीं होती
सच्चा प्यार बिन शब्दों के, रोम रोम से आवाज देता
इंसानी रिश्तों के गुलशन में, सत्य की महक फैलाता
समझने की बात है, इसलिए प्यार की व्याख्या करता
प्यार एक प्रवाह है, हर प्राणी के खून में बहता रहता
प्यार को खुदगर्जी को जहर न पिलाना, यही मानवता
रिश्तों और बन्धनों से बंधा जीवन ही, स्वर्ग कहलाता
प्यार आज भी कहता, मोहताज नहीं, मैं उपहार का
न मैं कोई दस्तावेज व्यवहार और कोई व्यापार का
दस्तखत दिल पर करता, हर कसम, वादा पूर्ण निभाता
नयनों की भाषा से, हर खुदगर्ज को पहचान भी जाता
कहना है, प्यार की गागर हर पल छलके, पर न टूटे
जग चाहे छूटे पर, पर दिल किसी का कभी भी न टूटे
प्यार हर सम्बन्ध का अस्तित्व, है, विश्व का स्थायित्व
सत्य से प्रेम का सबंध, प्यार का ही कोई अमृतमय तत्व…….कमल भँसाली