टूटता रहा दिल, फिर भी मुस्कराता रहा
न नापा कभी दर्द, जख्म ही सिंता रहा
जश भरी दुनिया बेगाना समझती रही
मैं यों ही प्यार की धुन गुनगुनाता रहा
जोश भरी जवानी नादानियां करती रही
उम्र अपनी मंजिल की ओर चलती रही
कहानी जिंदगी की शायद बदल जाती
अतीत के पन्नों की लिखावट सही होती
समय के अदृश्य अक्षर, कौन पढ़ पाता
कर्म के द्वार पर, भाग्य भी बदल जाता
रेखाओं में अस्त हुआ, मंजिल का सूर्य
जाते, जाते, अपनी लालिमा छोड़ जाता
चिंतन की धारा जब भी बदल जाती
मन पवित्रता के उदगम् में बह जाता
अकेलापन, शुद्ध विचारों में खो जाता
एक चिंतन, जीवन को बदलने आ जाता
दर्द कभी पराया नहीं, अपनत्व रखता
इसलिए आता, समझ का उपहार देता
दुनिया मौसम का ही होगी, कोई स्वरूप
देती कभी शीतल छाँव, कभी कड़ी धूप
राही हूँ, कई पथ का हूं, दावेदार
भूल चूक के पत्थर होंगे, बेशुमार
चलते ही जाना, जाना है, हर द्वार
कहना है, मेरे पास,प्यार ही प्यार…..कमल भंसाली