है, जिन्दगी के चाहे चार दिन
जीना तो पड़ेगा हर ‘पल’, हर क्षण
चाहे, जहर है, या अमृत जीवन
पीना तो पड़ेगा, हर ‘पल’, हर कण
‘पल’, जीवन सफर का एक हि रास्ता
राही को चलना, मंजिल का वास्ता
न यहां आज, न परसों,न ही कोई कल
जो है, वहीं है, यह निष्ठांत अछूता ‘पल’
अपरिचित सा भविष्य, हर ‘पल’ में रहता
मनमोहक, मधुर बन हर ,’पल’ छिन लेता
रातों की नींद में सितारे तक गिनवा देता
बड़ा जालिम, न जीने देता, न मरने देता
बुलन्दियों की गहरी घाटी में विलीन वर्तमान
बहुत कुछ देकर जाता, पर न करता अभिमान
सन्देश ही भेजता, जो आज, वो नहीं होगा कल
देख, समझ कर इंसान चल, आगे है, दूसरा ‘पल’
समझने लायक होता है, ‘पल’ का हर कमाल
हर ‘पल’, करता आशा और निराशा का निर्माण
देखते युग बदल जाता, पर रहता चंचल ‘पल’
उम्र को तराजू में तोल देता, वो ही है, यहीं ‘पल’
वर्तमान का हर लेखा, देता इतिहास को सौंप
जानेवाल ‘पल’, कितना निरहि, बिन संताप
इस ‘पल’ को जानना, यहीं है समय, यही वक्त
काल का निर्माणकर्ता, क्षणिक, पर पूर्ण सत्यत:
‘पल’ से बन्धी, हर सांस की डोर,
इसी से शुरु होती, आभामय भोर
जागों तो आएगा, सुरमई सवेरा
नहीं तो जिंदगी में, रहेगा अंधेरा
सच है, हर ‘पल’ नहीं सुनहरा
हर ‘पल’ में राज छुपा है, गहरा
न कोई इसका नाप, न हीं तौल
मणिमय ‘पल’, बिन मूल्य अनमोल
‘पल’ विश्वास, ‘पल’में समायी आस्था
‘पल’में ही आशा, पल में ही निराशा
पर, ‘पल’ का नहीं , किसी से वास्ता
‘पल’ तो है, प्रभु तक पँहुचने का रास्ता
मैं नहीं कहता, कहता हर ‘पल’
जीवन राही, मेरे साथ चला चल
देख दूर नहीं, तेरी प्रतीक्षित मंजिल
आज नहीं तो कल कहेगा, ‘स्वर्ण पल’
…..कमल भंसाली