जमाने का है, दस्तूर
गढ़े में गिरा इंसान
न काम का, न काज का
उसे निकालना है, बेकार
मानव, मानव से, कितना मजबूर
मानवता हुुुई
अब हम से, दूर
सच मानों यही है
आज का संसार
देखो तो, चारों तरफ
बिखरा, प्यार ही प्यार
समय आये,
तो नजर न आये
एक भी, रिश्तेदार
एक भी, यार
सिर्फ होता
गिरने पर विचार
पर, निकालने को
कहां कोई, तैयार
सच मानो, यही है
आज का संसार
सत्य यही
रश्मों से बंधे हाथ
कब दोनों बढ़ते
साथ, साथ
एक देता
दूसरा लेता
लेन देन
जो जान जाता
कहते है, कभी नहीं गिरता
भावनओं के समुद्र में
हर रिश्ते का
राज है, गहरा
गिरने वाले कि किस्मत में
यही है, लिखा
कहकर, दुनिया
कर लेती किनारा
पर दे, नहीं सकती
हल्का सा सहारा
कितनी मजबूर
सच मानों, यही है
आज का संसार
तथ्य यही, कहते
जो है, वो सच नहीं
जो सच है,
वो है, ही नहीं
गिरने वाले की हिम्मत
ही उसकी
अपनी तदबीर
जो जीता
वो ही सिकन्दर
बाकी, गिरने वाले का
अपना मुकद्दर
अपनों की दुनिया में
देखों, कितने होते मंजर
सच मानों, यही है
आज का संसार
वक्त, बदले
गिरने वाला
उठ जाता
न, सहारा देने
वाले हाथ
दोनों जुड़ जाते
अभिनय से भरपूर
हर मानव
रंगमच का कलाकार
अभिनय करता,
सहज, साकार
अंत सही,सब सही
नहीं तो
सच, मानों, यही है
आज का संसार
कमल भंसाली