पथ विहीन, हो, मंजिल का राही
आकांक्षा के जंगलों में मत भटक
ख्बाबों के जुगनू का टिमटिमाना
दृष्टि भ्रम ही तेरा, न जाना अटक
कहते है, राही, इस जंगल का, न आर है, न है पार
चन्दन के पेड़ों से लिपटे, लालचाह के सर्प बेशुमार
असत्य की कटीली चट्टानों पर न करना अति विश्राम
उन पर रेंगती गलत कर्मो की लाल चींटियां अपार
संभल करना चलना, सत्य की पगडण्डी करेगी उद्धार
चलते ही रहना, राही, आगे है, ज्ञान का विरुध वृतिकार
उसके पास ही मिलेगा संयम के नीर से भरा अमृत सरोवर
पावन हो तुम्हारीआत्मा, डुबकी उसमें लगाना जरुर, एकबार
लोभ की चुड़ैले, वासना के सियार, छितराये मिलेंगे चारों ओर
प्रार्थनामय शूरवीर हो, रखना साथ क्षमा का प्रमुख हथियार
ध्यान रहे हार न जाना, अभिमान के दानव करे जब विष प्रहार
भक्ति की शक्ति है, तेरे पास, राही, आजमाना जरुरत अनुसार
राही, समय के नक्शे पर देख, हो निग्रह, उस पर कर जरा गौर
एक पल में नवजीवन, दूसरे पल में अंत अनन्त का अलबेला शोर
कहीं धूप, कहीं छांव, कहीं सुरमई शाम, कहीं नि:स्पृह सुनहरी भोर
कहीं तन नोचती चीलें, तो कहीं दृष्टि मोह के प्रेमोन्मत्त मोर, चकोर
कर्म ही तेरा है, बल, मिलेगी मंजिल तुम्हें, कर एतवार
आत्म धर्म के देवता, बनेगें मार्ग दर्शक जरुर, इस बार
भटके राही, आकांक्षाओं का जंगल करेगा, अकेला ही पार
तेरा निश्चय ही बताएगा, तू है इस पार या जाएगा उस पार
राही रे, भटकना तेरा संसारिक अरण्य में है, लाजमी
सत्य है, तू त्रिदेव नहीं, है साधारण सा तन्हा आदमी
कहते है, सुबह का भटका, शाम को वापिस आये
वो, जीवन को जीने का सही दर्शन पा, मंजिल पाये……
कमल भंसाली