तुम्हारी आँखों की
तिजोरी में
मैंने कुछ अपने, “सपने”
धरोहर, समझ
भविष्य, के लिए
सुरक्षित रखे थे
मुझे आज भी है, याद
उन में थी, मेरी कुछ
आशा की बुँदे
अमानत थी, वो मेरी
तुम कहीं रख कर, भूल गए
ये, कह कर मुक्त हो गए
मैं कुछ नहीं कह सकता
आखिर…मैं हूं….. तुम्हारा पिता…..
तुम्हारे प्रथम “स्पर्श” से
जिंदगी मेरी, हुई आश्वस्त
बुनी, मैंने
भविष्य की डोर
दिया, उसका एक छोर
तुम्हारे हाथ में
दूसरे को पकड़े रहा
तुम खेलते रहे
बड़े होते रहे
खेलते,खेलते, तुम सब भूल गए
मैं पकड़े रहा, तुम छोड़ गए
तुम खड़े रहे, मैं गिर गया
गिर कर
उठना आसान, नहीं
गिरे को उठाले,
इतना वक्त तुम्हारे पास नहीं
मेरा पहला स्पर्श
आज भी उधार रहा
मांग नहीं सकता
आखिर…मैं हूं… तुम्हारा पिता….
गोद में, मेरी
कितने निश्चिन्त
तुम हो जाते
नयनों में उबासी भर
चैन से, सो जाते
वक्त बीत गया
आज मजबूर, “मेरी कराहट”
तुम को देती, झुंझलाहट
तुम कुछ नहीं, बोलते
बिन बोले, मैं समझ जाता
पर जानते हो, तुम
ऊपरवाले से बुलावा
जल्दी नहीं आता
तुम्हारी झूठी मुस्कान
से, मैं सहम जाता,
तय यही है,
दी हुई धरोहर
तुमसे, इस जन्म में
वापस, पा नहीं सकता,
क्योंकि, मैं मांग नही सकता,
आखिर …मैं हूं,..तुम्हारा पिता…. “कमल भंसाली”
कमल भंसाली