नाराज सी रहती
हर रोज जिंदगी
आनेवाला है , कोई तूफ़ान
कहती रहती, आजकल जिंदगी
समझाने पर भी नहीं मानती
वक्त के दरिया से
आनेवाले छोटे छोटे झोंकों से
सहम सी जाती, आज कल जिंदगी
असहमति के हजारों
पहलू बदल कर
सारी रात करवटे
बदलती रहती, आजकल जिंदगी
असहाय सी खड़ी
विश्वास की जमीन पर भी
आगे चलने से पहले
अविश्वास से,
सहारे को तलाशती, आजकल जिंदगी
है, जो, उसको नहीं मानती
दुनिया को ही
अपनी हर हार का
जिम्मेदार मानती, आजकल जिंदगी
उम्र के दर्द
सहन कर लेती
बिन रौशनी
अंधेरों में शुकुन तलाशती
अपनी ही चुप्पी में
अपनी सीमा रेखा
पहचान लेती, आजकल जिंदगी
नासमझ को कैसे समझाऊं
सही से कैसे
उसे दूर हटाऊँ
बेदर्द दुनिया में
उसका हश्र यही, होना
सही समझती, आजकल जिंदगी ….
कमल भंसाली