प्यासी नदी
दो किनारे
मध्यम,मचलती
यादें, वादों की लहरें
कुछ, बह गया
कुछ, रह गया
जीवन, फिर
बेखबर हो गया
जिन्हें न समेट पाया
वो, तेरी चंचल यादें
कुछ सूखे फूल
और, टूटे दिल के
बिखरे, बिखरे, शूल
पता नहीं, निष्कलंक प्रेम
क्यों गया, सब भूल ?
आज तुम कहीं,
मैं कहीं ओर मशगूल
अफ़सोस,
जुदाई का नहीं
सिर्फ है, इतना
जिन्दगी, बिखर गई
पर,चांदनी न बन सकी
चारों ओर
धुंध ही नजर आती,
सुनहरी, दोपहर भी,
न बन सकी
समय की नदी
अगर, विचलित नहीं होती
तो, आज तुम मेरी होती
मेरे अंगुलियों के पोर
तुम्हारे केशु में, जिन्दगी के
नये आयाम, तलाशते
यों ही, तन्हाई में
तुम, अपने ही नयनों में
उदासियां, नहीं समेटती
मुस्कराती, मेरी बाँहों में
सहमी सी, सिमट जाती
यादों, की उच्छिति लहरें
विश्वास की कुछ बूंदों को
जब भी देती
एक सम्पर्क
लगता,अब भी तुम हो
मेरे आसपास
मानों, मेरे चेहरे पर
अपनी जुल्फें फैला रही
और, तुम्हारी अंगुलियों के पोर
मेरे सूखे होठों पर
कुछ लिख रहे
शायद, यही ना
साजन, मेरे,
जिन्दगी, नहीं रूकती
हर रोज आगे बढ़ती
तुम, क्यों रुके ?
तुम, क्यों झुके ?
तुम, क्यों टूटे ?
जब सारा जग स्थिर
बताओं, क्यों रहे, विचलित ?
बिछड़ा प्रेम
अब भी दिल में, संतुलित
मानों कह रहा
प्यार को प्यार रहने दो
बिन रिश्तों के
सागर में, इसे यों ही
बहने दो…..
♠♠कमल भंसाली♠♠
कमल भंसाली