खंडित धारणाओं ने, जब भी आस्थाओं पर किया प्रहार
अपना जीवन पथ भटकता राही, एक नहीं कई बार
मंजिल के पास आकर भी, बन्द अँखियों से उसे ही ढूंढता
जीने की तमाम इच्छाओं का, रहनुमा बन कर् ही घूमता
चन्द सहानुभूति का हो जाता, निष्प्रभ मन मोर
समझौते की शर्तों पर भी, नहीं करता अति गौर
ऊपरी सतह की मुस्कराहट ही, उसकी घबहराट
भीतर में तो छुपी रहती, कायरता की छटपटाहट
सफल सकल आत्मा का दर्पण, टूट कर् हुआ चूर
जिस जीवन से प्यार किया, आहिस्ता से हो रहा दूर
रिश्तों के धरातल पर, अपनों से ही हुआ हर पल मजबूर
समझ नहीं पा रहा मन, क्यों टूटे, चिंतन दर्पण बार बार
असमर्थ संयोजन की ही होगी, कोई थकित कमजोरी
असंयत जीवन ही शायद छोड़ रहा है, निहितार्थ धुरी
समझ गया, जीवन का दर्पण नहीं झेलता, असत्यकारी
पग पग पर झूठ का सहारा ही, बड़ी होती कमजोरी
कल की व्यर्थ कल्पना, अब नहीं हो चिंतन की शैली
कल किसी का नहीं, तो खाली करले चिंता की थैली
यही है, सत्य पल, जो चल कर अगले पल से मिला रहा
जीवन खोयी सार्थकता को गले लगा, निस्पृह मुस्करा रहा
तिरोहित आत्मा ने समझ दिया, अब सबकी पारिमित्य
पदम् कुशन छोड़ मन, पढ़ धैर्य का पहला पारखी पाठ
तिनपहला जीवन है, बाकी है कामनाओं की साठगांठ
सत्य, अंहिसा, और संयम जिसमें हो, वो, शुद्ध जीवन पाय….
कमल भंसाली