दोस्तों, कहते है, कुछ हद तक जीवन आस्थाओं के नाम होता है। पति- पत्नी का रिश्ता भी जब जीवनपथ पर चलते, चलते उम्र के संध्या काल के पड़ाव पर विश्राम करता है, तो भावुकता से सरोबार हो जाता है। शारीरिक अक्षमतायें तथा सामाजिक और पारिवारिक अवहेलना के दर्द के अलावा उनमेँ एक शीघ्र होने वाले किसी एक का बिछौव भी आंतरिक असहय दर्द दिल में स्पंदन करने लगता है । नारी भावुक और संवेदनशील ज्यादा होती है, इस तरह की स्थिति में पुरुष अपने जीवन साथी की अनकही पीड़ा को आत्मसात कर, उसे दिलासा देता है । इन्हीं सब जज्बातों को लेकर यह कविता लिखी है ।
लेखक नहीं हूं, गलती को सुधारने में सहयोग करे, अच्छी लगे तो शेयर करे….कमल भंसाली
तुम्हारी खुशबूओं से, कब अधूरा रहा
चाहत के फूल, हमेशा खिलाता रहा
खाली आसमां, काँटों जैसा चुभता रहा
दर्द तुमको हुआ, दिल मेरा रोता रहा
ख़ामोशी, तुम्हारी बहुत कुछ कहती
योंही पलके, किसी की नहीं झुकती
दर्द को, दिल में इतना न अब डुबाओ
मेरे पास आकर, सारे गम दे जाओ
दस्तूर, प्रेम का दिल को होता समझना
ख़ुशी हो या गम हम दोनों एक है, हमदम
परेशानियां हजारों सही, मत मातम मना
आसां नहीं जिन्दगी, जरा समझ मेरे सनम
आ तुझे सजा दूँ, फिर से दुल्हन बना दूँ
मीत मेरे, कहे अगर, मिलन गीत लिख दूँ
सूखे आंसुओं की, मोतियों की माला बना दूँ
सपने सब सच नहीं होते, ये यकीन दिला दूँ
उम्र का पेड़ भले हो जाए, कितना ही जर्जर
प्यार की शाखायें, सदा फैलती रहती निर्झर
कल हम न रहे, महक बनकर फिजा में महकेंगे
हमारी तस्वीर पर, सदा “धूल के फूल” खिलेंगे……
कमल भंसाली