आ मेरे दिल, करे सुबह की अनुपम सैर
देख पर्वतों से निकल रही, सुनहरी भोर
कल कल बहता, नीर करे मृदुल मृदुल शौर
संजीदा होकर भास्कर, बिखर रहा चारों ओर
बहते झरनों का देख, नाच रहा मन का मोर
आ मेरे दिल…
देख दिल, मगन होकर गगन की ओर
कैसे झुक रहा, संगिनी वसुंधरा की ओर
कशिश संगमन बन रही, घटा घनघोर
बहती बयार से मन बन हो गया, चितचोर
देख सुहावनी सुबह हुई कितनी, मनहोर
आ मेरे दिल…
देख प्रकृति कैसे फूलों से सजाती, उपवन
कलियों की मुस्कराहट, भँवरो का गुंजन
तितलयों का उड़ना, पक्षियों का क्रंदन
पेड़ झूम झूम उड़ा रहे, जीवन का स्पंदन
मन बहक बहक कर भाग रहा, चारों और
आ मेरे दिल…..
नदी नाले देख, देख हरी भरी घाटिया
इंद्रधनुषी रंगों से सज रही, सारी वादिया
बीजांकुर हो रहे पौधे,गीत गा रही बिसुनी
प्रणय से भरपूर झील में तैर रहे, हंस हंसिनी
प्रफुलित मन संजो रहा, नव ऊर्जा धरोहर
आ मेरे दिल …..
शीत काल का आया सदाबहार, नवल दौर,
कर हर दिन दिल, युवा सुबह की सैर
सांसो में भर ले उषा ओजोन,भरपूर
स्वस्थ रहेगा, तूं होकर तनावों से दूर
खिलता रहेगा, तेरा “कमल” तेरे अंदर
आ मेरे दिल……
कमल भंसाली