(“दोस्तों, “माँ” ही एक ऐसा शब्द है, जो किसी भी तरह की चोट लगने से प्रथम मरहम का काम करता, वो ही “माँ”आज जब दर्द से कभी कराहती है, तो हम ध्यान नहीं देते…पता नहीं, जिंदगी के इस सुनहरे सत्य से, दूर क्यों भाग रहे है ? माता पिता, सन्तान के लिए सारा दर्द पी जाते तो क्या सन्तान का कर्तव्य नहीं, उनके उम्र का दर्द समझे । मेरा तो यही कहना है, अगर आप खुशनसीब है और आप के माता पिता आपके पास है, तो उन्हें सदा यह एहसास देते रहें की आप उनके पास हर समय है …इसी सन्दर्भ में यह कविता है, भावनाओं को महसूस कीजिये और अपने माता पिता का आश्रीवाद सदा लीजिये”………..शुभकामनाओं सहित..कमल भंसाली )
कल मैं तुम्हारे पास था
आज तुम मेरे पास हों
पर फर्क इतना ही है
कल तुम खुश थी
आज तुम नाराज हो
हक भी है,
आखिर, तुम मेरी माँ हो…
जब जन्म लिया
पहले पहल तुम्हारी ही
गोद, में ही सोया
भूख, लगी तो
दूध, तुमने ही प्रथम बार
मुझे सीने से लगाकर पिलाया
अपना फर्ज तुमने
बड़ी सहजता से निभाया
कितनी सहज हों
आखिर, तुम मेरी माँ हो
चोट जब कभी लगी
तब तुमने ही मलहम
गले लगाकर लगाया,
नींद नहीं कभी, आई
लोरी गाकर, थपकी देकर
तुमने ही सुलाया
प्रथम कदम, सही ढंग से
चलना तुमने ही सिखाया
सही पथ पर, मुझे खड़ा किया
वो, पथ मैं भूल गया
पर तुम नहीं भूली
आखिर, तुम मेरी माँ हो
कितना ख्याल
तुम्हारे नयनों में रहता था
रात को जगकर भी
मुझे निश्चिंतता देती थी
लात कभी पेट पर मारता
तब भी तुम मुस्कराती
आज भी मैं सोया
तुम जाग रही हों
जैसे बीते सपने को भुला रही हों
तुम कुछ भी नहीं भूल रही
मैं ही भूल गया
आखिर, तुम मेरी माँ, हो…..
कमल भंसाली