आदमी कितना ही ज्ञानी और शिक्षित क्यों न हो उसकी पहचान बिना धन के नगण्य हो जाती है | धन अपनी क्षमता से सभी कमाते है | समय था, धन इतना अपेक्षित मायना नहीं रखता था, आदमी रोटी कपड़े के प्रबंध से संतुष्ट हो जाता था |
कर्म प्रधान जीवन होते हुए भी मान सम्मान को बराबर महत्व देता था | आज साधन प्रदान जीवन जीने वाला सिर्फ अर्थ को महत्व देता है, स्वास्थ्य पर ध्यान देना उसकी पूरी मजबूरी है,अन्यथा वो बेपरवाह जीवन ही जीता |
एक सवाल जो सही उत्तर चाहता है की क्या अति साधन का उपयोग कर आज का “मानव जीवन”ज्यादा सुखी है ? सवाल की तह तक जाने से पहले यह जानना ज्यादा सही होगा, आखिर जीवन है, क्या ?”जीवन” किसी भी मानव को धरती पर रहने की अनुमति है, जन्म के बाद, इसे हम temporary visa भी कह सकते है | हर मानव को सीमित समय ही मिलता परन्तु दिमाग अनंत क्षमताओं से भर पूर होता है | आदमी को बनानेवाले ने एक गुण मापक भी दिया ताकि अपनी गलती का अहसास करता रहे, की क्या वो जो भी कर रहा है, वो सही है, हम उस यंत्र को “आत्मा”के नाम से जानते है | शरीर, दिमाग और आत्मा एक दूसरे से जुड़े है, तथा हम इन्हें हमारे जीवन के त्रिदेव भी कह सकते है |
दिल और मन एक ही सिक्के के दो पहलू है ये ही हमें प्रोत्साहित करते की हम कैसे अपने जीवन को बेहतर बना सकते है | आइये, जरा वर्तमान की तरफ रुख करते है |
आज युग पूरी तरह से परिवर्तन हो गया, आधुनिकता तथा विज्ञान दोनों ही समान रुप से एक दुसरे का सहयोग कर रहे है | जो आज कमजोर साबित हो रहे, वो है, संस्कार, चेतना, शरीर, प्रेम, स्नेह, संयम और आत्मा | दिमाग ने शरीर का तथा आत्मा का साथ छोड़ कर आधुनिकता और विज्ञान का साथ देना शुरु कर दिया | ये एक विपरीत क्रिया है जो आगे जाकर अपनी अशुभता का परिचय देगी | सच तो मानो रूठ कर कोसो दूर चला गया उसकी छवि आत्मा में दिनोदिन कमजोर पड़ती जा रही है | मोबाइल को ही लीजिये पता नहीं कितने झूठ का आदान प्रदान इसके द्वारा रोज किया जाता है | किसी लेखक ने कभी अपने एक जासूसी पात्र से कहलाया “जितना बड़ा जूता होगा, उतनी ज्यादा पालिस की जरूरत होगीं” | आज के दैनिक जीवन का यही हाल है | सुबह उठते ही मंजन से लेकर रात को सोने तक हम इतनी वस्तुओं का प्रयोग करते है, जो हमें बाजार से लानी पड़ती है, कर्म से ज्यादा हम भोग करने लग गये |
आज कुछ सवाल हमारे अपने लिए स्वयं से पूछने जरूरी हो गये | हम चाहे तो जबाब न दे पर अपने आप से भागकर
हम कहां जायेंगे, जब तक देरी हो उससे पहले कुछ आत्म अवलोकन करने में हर्ज ही क्या है ? सबसे प्रथम हम अपने आप से पूछते है, ” हमारे जीने का मकसद क्या है, साधारण जीवन या थोड़ा विशिष्ठ जीवन या फिर पूर्ण सहज विशिष्ठ जीवन” ?
साधारण जीवन एक बिना या सीमित चिंतन का जीवन है, ज्यादातर इस जीवन को ही जीते है. विशिष्ठ जीवन वहीं जीते है, जो इसका मूल्य मन से समझते हैं, उनके दिमाग में कुछ अलग और शानदार जीवन जीने की तमन्ना रहती हैं |
सहज विशिष्ठ जीवन वो ही जीता है, जो अपने सत्कर्म और पूर्ण सत्य से जीवन को मूल्यांकित करते है और इस युग में अब इनका मिलना दुर्लभ ही कहा जा सकता है |
आज के दौर में थोड़ा विशिष्ठ जीवन जीना काफी महत्व पूर्ण है, इसके अंतर्गत शारीरक रूप से स्वस्थ, मानसिक दृढ़ता, आर्थिक सक्षमता, मानवीय व्यवहारिक दृष्टिकोण और धार्मिक संस्कार प्रवृत्ति का होना अत्यंत जरूरी होता है | चंद इन्सान ऐसे होकर अपने होने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करते है | ये किसी भी श्रेणी से आ सकते है,चाहे वो वैज्ञानिक या इंजीनियर या खिलाड़ी या व्यापारी हो |
उनकी ये सब “श्रेणिया” उनका परिचय ही होता है, बाकी उनके द्वारा किया जन कल्याण कार्य ही उनका सार्वजनिक व्यक्तित्व तय करता है | हकीकत में इसे ही जीना कहते है, बाकी को हम खाना पूर्ति श्रेणी में ही रख सकते है |
यह मानना भी यहाँ गलत होगा जो संयम से जीते है, वो सिर्फ अपने लिए जीते है, वास्तव में ये वो अच्छे इन्सान होते है जो जीवन को ज्यादा मानसिक शांति पूर्ण बनाना चाहते है तथा उन्हें अपनी सीमाओं की जानकारी होती है |
अत: हम अगर ऐसा जीवन जीते है, तो सही जीवन ही कहा जाएगा और हमें अपने वजूद पर गौरव होगा |
आइये जानते है, हम इसे कैसे कर सकते है …….?
बचपन तक की यात्रा बिना पारिवारिक जिम्मेदारी की होती है, जिसमे शारीरिक और मानसिक ऊर्जाए तेजी से बाहरी वातावरण के अनुसार अपना विस्तार करती है | शरीर ओर चिन्तन में बाहरी और भीतरी स्वरूप में परिवर्तन के आसार नजर आने लगते है | जीवन अपनी नई जिम्मेदारियों के माहौल के प्रति संतुलन बनाये रखने की चेष्टा में लग जाता है |
यह समय काफी सवेंदनशील होता है, यौवन अपनी चरमसीमा की तरफ अग्रसर होने लगता है | भटकाव की भूमिका नये मधुर संपर्को के लिए लालायित रहने लगती है | ऐसे समय संयम ही एक उपाय होता है, जिसका उपयोग नितांत जरूरी होता है | हकीकत में, शानदार सफल या निराशा से ग्रसित व्यक्तित्व की बुनियाद इसी उम्र से शुरु होती है |…..क्रमश
कमल भंसाली