गुरु कहते , जिन्दगी तो साफ सुथरी ही आती
कर्म की प्रतिरूपता सुंदर या कलुषित बनाती
भटकाव की प्रथम सीढ़ी,असंयत उम्र दिखाती
अज्ञानी को ही,सिर्फ यह बात समझ न आती
मानव मन जरा संभल, आगे तेरी अपनी नियति
यौवन रस भरी जिन्दगी, करे जब द्रवण
दौलत को आये जब मादक, अंगड़ाई
द्वैध हो जाए आत्मा, बिन स्वस्थ प्राण
चेतन मन की बढती जाये, आंतरिक रुलाई
मानव मन जरा संभल….
आस्था के नरगिसी प्रसून, बन जाते शूल
जीव क्यों हो गया, कामनाओं में मशगुल
अतृप्त का बोध बन गया, जहर का जंगल
ढह जायेगा जल्द,अनधिकृत देह का महल
मानव मन जरा संभल…
अनबुझ अनंग आत्मा कर, अब तो कर प्रतिकार
सोच समझ आगे बढ़, नहीं तो यह जन्म बेकार
ग्रसित तन को दे सदा स्वस्थ और स्वच्छ विचार
अर्थ का न हो अब अनर्थ, अपना ले, अमृतमय सदाचर
मानव मन जरा संभल……
यौवन के दिन चार, भोग इसे जरा हो कर समझदार
जीवन की कीमत तय करता, सत्कर्म का बाजार
पतन के सिंहासन पर बैठ, न कर शूली का इंतजार
बहु कोशिश के बाद ही मिलता,मानव जीवन एक बार
मानव मन जरा संभल…..
कमल भंसाली