क्यूँ नाराज है, जिन्दगी
बता जरा
क्या हुआ तेरे साथ
उदास है चेहरा
तमन्नओं का छोड़
आ, मेरे पहलू में बैठ
मुस्करा जरा
गम को अलविदा कह
मन को हर्षा जरा
दुःख में दीखता
सब कुछ धुंधला
अब, बता क्या दुःख तेरा
देख दामन्
जब इच्छाओं का फैलाया
कुछ दाग तो है, स्वंयभाविक
समझ जरा
पथ सब समय हो, खुशनुमा
मुश्किल है जरा
अपने पराये की परिभाषा में
न उलझ जरा
कर्म ही सच्चा दोस्त
विश्वास कर मेरा
असत्य से सदा दूर रह
वो पथ नहीं तेरा
तूं, अकेली नहीं दुखी
जग में जा
कौन पूर्ण सुखी
बता जरा
चल उठ चलते है
नई मंजिल नये रास्ते
ढूंढते है, जरा
अब निराश न होना
दुःख के बादल छंट जायेंगे
इंतजार कर,जरा…..
कमल भंसाली