उन खुशबूदार संस्कारित हवाओं को मेरा प्रणाम
जिनमे आज भी रहती है शालीनता, वदान्य अनाम
दौर तो कैसे, कैसे तुफानों से गुजर रहा, मालुम नहीं
परिणामों का जिक्र करना तक, लगता अच्छा नहीं
आधुनिकता के नाम पर शर्मिंदगी का,अहसास नहीं
कौन छोटा, कौन बड़ा, इसका भी सही ज्ञान नहीं
अर्थ का अनर्थ सबको मान्य, सुधार की चिंता नहीं
दावा उनका प्रगति के नायक, जीने का समय नहीं
इतिहास देगा गवाही, बिन संस्कार जीवन नहीं
धर्म का अस्तित्व बतायेगा, आडम्बर शान्ति नहीं
उपकरणों का ज्यादा उपयोग, जीवन में रस नहीं
शालीनता बिना संस्कार का अस्तित्व कभी नहीं
गुण अवगुण दो तत्व, इनका ज्ञान ही है, शुद्ध विज्ञान
लक्ष्य सिर्फ हो भोग, बाहर इंतजार करते मिलेंगे रोग
लक्ष्य सिर्फ झूठी शान, वो भी थोड़े दिन की मेहमान
स्वच्छ संस्कारित आधुनिकता ही, सही दैनिक प्रयोग
वक्त रुकता नहीं, जिन्दगी सदा गतिमय चलती रहे
प्रार्थना प्रकृति न बदले, चमन, गगन में संतुलन रहे
आधुनिकता के साथ, संस्कारित शालीनता सदा रहे
ऐसे परिवर्तन को सदा प्रणाम, मानवता सदा स्वस्थ रहे……
【★★★कमल भंसाली★★★】
कमल भंसाली