अजीब दास्तां है जिन्दगी
समझने से अच्छी नहीं लगती
न समझे तो यों ही चलती
उम्र बीत जाने पर
अपनी बेवकूफियों पर हंसती
अजीब दास्तां …..
सफर ही है जिन्दगी
तीन पड़ावो में से गुजरती
बचपन का पड़ाव अलबेला
नादानियों का मस्त मेला
जमीं से नभ तक का दम
हम नहीं किसी से कम
कौतुहल ही एक कर्म
सब कुछ जानना ही धर्म
ज्ञान की गंगा में नहाना
हंसते गाते हर गली से
बेखौफ निकल जाना
सहज पहले पड़ाव
का गुजर जाना
अजीब दास्तां….
मदमस्त यौवन मुस्कराता
खेल जवानी के खेलता
प्रेम रंग की उतंग तरंगो
से बदन को नहलाता
आकांक्षा और लालसा
की नाव पर यात्रा करता
धन उपार्जन की विधि सीखता
कुछ पाकर सब कुछ खो देता
कुछ पाने पर इतराता
अनियमित जीवन अपनाता
शंकित और अनियंत्रित
दूसरा पड़ाव भी गुजर जाता
अजीब दास्तां…..
ऋतू परिवर्तन के मर्म को समझता
आस्थाओं का पूर्ण मूल्याकंन करता
विगत जीवन का विश्लेष्ण करता
क्षीण होती काया की मजबूरी समझता
झुकाने की चाह की जगह खुद झुक जाता
आलोचना की जगह क्षमा अपना लेता
संयमित जीवन की रुपरेखा बनाता
अपने से ज्यादा दुसरों पर आश्रित होता
अंतिम और तीसरा पड़ाव
बिन मुल्य ही संसार छोड़ जाता
अजीब दास्तां……..
●π●π● कमल भंसाली ●π●π