पथ हार, मै
बैठ गया
हजार बार
हताश होकर
चिल्ला पड़ा
प्रभु,तुम हो कहाँ
पता नही अंतर्मन में
कहीं से आवाज आई
मै वहां हूँ, ही कहाँ
जहाँ,तुम नही
तुम्हारा अविशवास रहता
सागर की उदित लहरों को देखो
खिलती हुई कलियों की मासूमियत को परखो
उगते भास्कर की पवित्र किरणों में झांको
फिर अपने मन के उस खाली त्रिकोनो में
जहां,आडम्बर नही, सत्य का कोई चिन्ह खोजो
अगर कहीं, तुमने कभी बनाया हो
वहीं, शायद कहीं तुम्हे मिल जाऊ
पर,सच तो यह है असत्य के जंगल में
तमस भरी रातों में
तुम जिस भक्ति के
दीपक के उजालो से
मुझे पाना चाहते हो
वो कुछ नही
वो है तुम्हारा अपना भ्रम जाल
मकड़ी की तरह भटकते रहोगे
मुझे देखने की अगर है इतनी चाह
तो पूर्ण सत्य और असीम प्रेम की राह पकड़ो
शायद मुस्कराता, स्वागत करता
तुम्हे, कभी भी,कहीं भी मिल जाऊ….|
★★★कमल★★★
कमल भंसाली