मौहब्बत में हमने बहुत कुछ सहा
सब बयान करें तो फिर मौहब्बत कहां
जिक्र जब भी मौहब्बत का महफ़िल में करेंगे
अपनी मौहब्बत का खुदा से कम न करेंगे
बेवफाई के हजारों इल्जाम ही सही
जिगर में खून तो वफा का बहता
तुम्हारे रहमों कर्म पर जिये ये खुदारी नही
पर तुम्हारी बेरुखी भरी नजर से दिल जलता
माना तुम्हारे हुस्न का दिल है दीवाना
क्या गुनाह है किसी के ऊपर मर जाना
बेखबर दिल ना समझे शक के अफसाने
तू कहे अगर तो तेरी महफिल से उठ चले
कल तुम्ही ही कहोगी आदमी तो थे भले
आखरी पैगाम मेरी मौहब्बत का तेरे नाम
कोई न कोई जवानी ढलती हर शाम
ढलती उम्र में भी कभी कर लेना याद
हमारी तो सदा रहेगी, दुआ तुम रहो आबाद
●●>>कमल भंसाली