हमें कुछ कहना है
हाँ,हम हैं नीवं के पत्थर
हमारे ऊपर ही निर्भर तुम्हारा घर
कितना विश्वास हैं तुम्हारा, हम पर
सदा झेलते तुम्हारी बढतीआकांक्षाओं का भार
कितने सुरक्षित तुम, हम कितने मजबूर
गिला नहीं, शायद यही है हमारी तकदीर
गिला इतनी, तुमसे हैं जरुर
भूल गये,हमे रखकर अंदर
शायद तुम्हे नही आदत
झाँकने की अंदर
इसलिए खुश हो जाते
बाहर वाली दीवारों को रंगकर
हम अशिष्ट नहीं होते
पर कहने से भी नहीं डरते
कभी कभी हल्का सा झटका देते
शायद तुम्हे ख्याल आ जाए
सभी की एक उम्र होती
ख्याल अंदर का भी रखना जरूरी
बाहर तो सारी सजावट रहेगी सदा अधूरी
सदा रंग ढंग बदलती रहेगी, कभी न होगी पूरी
आडम्बर और दिखावे की यही मजबूरी
पर हम अंदर से आशवासन देते
निष्फिक्र रहो
हम नही बदलेंगे जब तक तुम नही बदल देते
आखिर हम है नीवं के ……..
कमल भंसाली